Monday, December 31, 2012

एक झूट - एक सच

उसने माँ को फोन किया 
और कहाँ 
मेरी ट्रेनिंग ख़तम हो गयी हैं 
आजसे मैं पर्मनंट हो गयी हूँ 

माँ ने शक्कर रखी भगवान के सामने 
और दो आसूं बहाए 
बेटी के बाबा के फोटो के सामने 

उन्होंने आठ महीने पहेले 
खुदख़ुशी की थी खेत में दवाई पी कर 

और आज,
बेटी अपने एजंट से रेट का आधा हिस्सा 
पाने की ख़ुशी और ग़म 
शराब पी कर मना रही थी 

Friday, December 14, 2012

वादा

धीमी स्ट्रीट लाईट की रौशनी सूंघी थी मैंने

थोड़ी मिठास थोड़ी कड़वाहट
मेहसूस की थी उस पीले रंग की 


तुम्हारी गेहेरी काली आखों में
एक सुनहरी चमक झलकी थी 


जब फिर मिलने का वादा किया था

Sunday, November 11, 2012

'हम न होते तो तुम्हारा क्या होता?'

कुछ यादें गुनगुनाती हैं अपने आप से ही
बाल्कनी से देखती हैं बाहर
तकती हैं धीमी रौशनी में चमकने वाले पत्ते की ओर

 
कुछ यादें चुपचाप सी रहेती हैं
देखती हैं गेहेरे कुएमे उठने वाले तरंगों की ओर 


कुछ यादें जीतोड़ कोशिश करती हैं 
झरोंकोंसे उतरने वाले धूप के टुकड़ों को पकडनेकी
लेकिन वह अक्सर अपना ठिकाना बदलते रहेते हैं 


कुछ यादें बैठी होती हैं नदी किनारे
ठंडे पड़े पत्थर के घाट पर
कलकलाकर बेहेने वाले पानीं में पैर डुबोंकर


कुछ यादें सुंगति हैं कप से निकालनें वाले
अदरक के स्वाद की भांप को
चाय की चुस्कियां लेती हैं छत के सीड़ियों पर खड़े होकर 


आज ये यादें पूछ रही हैं मुझसे
'हम न होते तो तुम्हारा क्या होता?'

 

Thursday, September 27, 2012

सिर्फ तुम्हे पता हैं

हवा ने आलाप लिया था 
मैंने उसमे तान मिलायी 
पत्तों ने सरसराके ताल जमाया 
मैं लफ्ज़ ढूंड रहा हूं

सिर्फ तुम्हे पता हैं, वो कहाँ गुम हो गए हैं...

Sunday, September 23, 2012

राह चलते


राह चलते कितनी सारी फ्रेम्स होती हैं 
जैसे बुलाती हो लेने को तसवीरें 

बारिश से फिसलन बने फुटपाथ पर
ज़ंग चढ़े बेंच पे बैठे
एक बच्चा अपने पापा का फोन देखता हैं 
उसके चेहेरे से लगता हैं जैसे 'स्नेक' खेल रहा हो 

कहीं एक चाची अपनी तेज़ स्कूटी से हवा काटती हैं 
उनके सामने रखे थैली से झांकती हैं हरी सब्जियां 
और पिलियन सीट पे उलटा बैठा होता है एक शैतान बच्चा 
पुरे रास्तें को अपनी मैण्डक जैसी आखों में समाए हुए 

मेन रोड के किसी गली में 
अपनी बाइक लगाके एक लड़का 
बातें करता हैं एक स्कार्फ से मूह ढके लड़की के साथ 
लड़का टालता हैं लड़की की आखों में झांकना 
यूँहीं आने जाने वाली गाड़िया देखता हैं 

पीले अमरुद से आधी भरी एक टोकरी सायकल के कॅरिअर को बांधे, एक फलवाला नुक्कड़ पर खड़ा दिखता हैं 
दोपहर का खाना खाकर जैसे एक सिगरेट जलानें की सोच रहा हो 

वैसे एक एक करके तस्वीरें निकाली हैं मैंने इनकी 
लेकीन जो रौनक लाती हैं ये फ्रेम्स रास्तों को 
काश कोई कॅमेरा उसे कॅप्चर कर सकता

Monday, September 3, 2012

चश्मा



चश्मा उतारा तो सब 
धुन्दला दिखने लगता हैं 
रास्तें, चेहेरें और रोशनियाँ भी
पता हैं के नज़र धुन्दलाई हैं
मगर ये भी पता हैं 
के मेरी अपनी हैं 

आज कल चश्मों से 
छुटकारा पानेकी सर्जरी 
बहुत सस्ती हो चुकी हैं  

Friday, August 3, 2012

ओस


वो फूल और पत्ते, ओस में भीगे
वो नीम के टेहेनी पे पंछी हैं जागे

मैं छूता हूँ बुन्दोको हथेली पे लेने
लमहा वो छलके यादों में खोने