कुछ यादें गुनगुनाती हैं अपने आप से ही
बाल्कनी से देखती हैं बाहर
तकती हैं धीमी रौशनी में चमकने वाले पत्ते की ओर
कुछ यादें चुपचाप सी रहेती हैं
देखती हैं गेहेरे कुएमे उठने वाले तरंगों की ओर
कुछ यादें जीतोड़ कोशिश करती हैं
झरोंकोंसे उतरने वाले धूप के टुकड़ों को पकडनेकी
लेकिन वह अक्सर अपना ठिकाना बदलते रहेते हैं
कुछ यादें बैठी होती हैं नदी किनारे
ठंडे पड़े पत्थर के घाट पर
कलकलाकर बेहेने वाले पानीं में पैर डुबोंकर
कुछ यादें सुंगति हैं कप से निकालनें वाले
अदरक के स्वाद की भांप को
चाय की चुस्कियां लेती हैं छत के सीड़ियों पर खड़े होकर
आज ये यादें पूछ रही हैं मुझसे
'हम न होते तो तुम्हारा क्या होता?'
बाल्कनी से देखती हैं बाहर
तकती हैं धीमी रौशनी में चमकने वाले पत्ते की ओर
कुछ यादें चुपचाप सी रहेती हैं
देखती हैं गेहेरे कुएमे उठने वाले तरंगों की ओर
कुछ यादें जीतोड़ कोशिश करती हैं
झरोंकोंसे उतरने वाले धूप के टुकड़ों को पकडनेकी
लेकिन वह अक्सर अपना ठिकाना बदलते रहेते हैं
कुछ यादें बैठी होती हैं नदी किनारे
ठंडे पड़े पत्थर के घाट पर
कलकलाकर बेहेने वाले पानीं में पैर डुबोंकर
कुछ यादें सुंगति हैं कप से निकालनें वाले
अदरक के स्वाद की भांप को
चाय की चुस्कियां लेती हैं छत के सीड़ियों पर खड़े होकर
आज ये यादें पूछ रही हैं मुझसे
'हम न होते तो तुम्हारा क्या होता?'