Sunday, September 23, 2012

राह चलते


राह चलते कितनी सारी फ्रेम्स होती हैं 
जैसे बुलाती हो लेने को तसवीरें 

बारिश से फिसलन बने फुटपाथ पर
ज़ंग चढ़े बेंच पे बैठे
एक बच्चा अपने पापा का फोन देखता हैं 
उसके चेहेरे से लगता हैं जैसे 'स्नेक' खेल रहा हो 

कहीं एक चाची अपनी तेज़ स्कूटी से हवा काटती हैं 
उनके सामने रखे थैली से झांकती हैं हरी सब्जियां 
और पिलियन सीट पे उलटा बैठा होता है एक शैतान बच्चा 
पुरे रास्तें को अपनी मैण्डक जैसी आखों में समाए हुए 

मेन रोड के किसी गली में 
अपनी बाइक लगाके एक लड़का 
बातें करता हैं एक स्कार्फ से मूह ढके लड़की के साथ 
लड़का टालता हैं लड़की की आखों में झांकना 
यूँहीं आने जाने वाली गाड़िया देखता हैं 

पीले अमरुद से आधी भरी एक टोकरी सायकल के कॅरिअर को बांधे, एक फलवाला नुक्कड़ पर खड़ा दिखता हैं 
दोपहर का खाना खाकर जैसे एक सिगरेट जलानें की सोच रहा हो 

वैसे एक एक करके तस्वीरें निकाली हैं मैंने इनकी 
लेकीन जो रौनक लाती हैं ये फ्रेम्स रास्तों को 
काश कोई कॅमेरा उसे कॅप्चर कर सकता

4 comments:

  1. खूपच सुरेख!! आवडली! माझ्यापण डोक्यात अशा फ्रेम्सबद्दल लिहिण्याचे आहे! पण शब्दबद्ध करता येत नाहीये! बघू कधी जमतेय.

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  2. WA WA. Did not know that you write in Hindi. How? Will love to talk about this. Keep it up.

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  3. Would love to see the photos too...

    T

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